संपूर्ण भारतवर्ष में कोई भी काम शुरू किया जाए तो “श्री गणेश” का नाम लेकर ही शुरू करते हैं। कोई भी काम करना हो तो, लोग कहते हैं कि इस काम का “श्री गणेश” करो।
तो आज इस आर्टिकल में हम समझेंगे की श्री गणेश जी के प्रथम पूजनीय होने का रहस्य क्या है।
श्री गणेश जी के प्रथम पूजनीय होने का रहस्य
गणेश जी के प्रथम पूजनीय बनने की कहानी की शुरुआत करते हैं हम दुर्वासा ऋषि से ।दुर्वासा ऋषि बहुत तप -पूजा -पाठ किया करते थे । एक दिन विष्णु जी ने उन्हें प्रसन्न होकर अपना अति प्रिय पुष्प (पारिजात) दिया और यह वरदान उसके साथ दिया, कि जो भी इस पुष्प को अपने मस्तक पर धारण करेगा । “वह अति बुद्धिमानी होगा। वह देवताओं में अग्रणी होगा। पूजनीय होगा । बुद्धि और देवताओं में सबसे शक्तिशाली होगा।” ऋषि दुर्वासा यह वर पा कर प्रसन्न हुए और वहां से चले। उन्होंने सोचा कि इंद्रदेव को यह पुष्प भेंट करते हैं , क्योंकि देवताओं के राजा को प्रथम पूजनीय होना शोभित होता है।यह सोचकर वह इंद्र देव के पास गए । वहां गए ,तो इंद्रदेव अपनी अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे। उनका ध्यान अभी अप्सराओं की तरफ ही था। ऋषि दुर्वासा ने उन्हें वह पुष्प भेट दिया और उसका महत्व भी समझाया । परंतु क्योंकि इंद्रदेव का ध्यान अभी अपनी अप्सराओं की तरफ ज्यादा था, तो उन्होंने इतना महत्व उस पुष्प को नहीं दिया और अपने वाहन हाथी ऐरावत के मस्तक पर रख दिया।
क्योंकि उसे वरदान वाले और पूजनीय फूल का निरादर करने के कारण इंद्र की महत्वपूर्ण चीज उनसे छिन गई। उनकी अप्सराए उन्हें छोड़कर चली गई। उनका मान सम्मान कम हुआ और ऐरावत हाथी भी उन्हें छोड़कर जंगल में चला गया और वहां जाकर उसने एक परिवार बसाया और आगे चलकर उसके बच्चे हुए ।
वहीं दूसरी और मां पार्वती ने मिट्टी से एक छोटा सा बाल स्वरूप बनाया और उसमें प्राण प्रतिष्ठा की ,परंतु जब उन्होंने इस पुत्र को बनाया । तब भोलेनाथ वहां उपस्थित नहीं थे। भोलेनाथ जब वापस आए तो उन्होंने अपने घर के बाहर एक बालक को देखा; जो उन्हें घर के भीतर नहीं जाने दे रहा था। इसी बात पर दोनों में वाद-विवाद हुआ। बात युद्ध तक पहुंच गई और भोलेनाथ ने अपने त्रिशूल से उसे बालक का सिर काट दिया। जब मां पार्वती को यह पता चला कि भोलेनाथ ने उनके पुत्र का मस्तक काट दिया है तो वह बहुत परेशान हुई और क्रोधित हुई; तो भोलेनाथ ने एक तरीका निकाला कि यदि इसी नक्षत्र में जन्मे किसी बालक का सिर मिल जाए ,तो वह इस बालक के धड़ के साथ उसे जोड़ देंगे और यह पुनः जीवित हो जाएगा । यह कहकर अपने सभी दूतो को चारों दिशाओं में भेजा ,कि आप एक बालक का सिर ढूंढ कर लाओ, जिन्होंने गणेश जी के ही नक्षत्र में जन्म लिया हुआ हो ।
जब शिव जी के सभी गण चारों दिशाओं में घूम रहे थे। उन्हें केवल ऐरावत हाथी का पुत्र मिला जिसका यह मस्तक काट कर ले आए । भोलेनाथ ने इसी हाथी के मस्तक को बालक के शरीर के साथ लगाकर जोड़ दिया और बालक को जीवित कर।
क्योंकि ऐरावत ने उसे फूल को अपने सर पर लिया था तो जो सभी गुण उसे पुष्प के आशीर्वाद स्वरुप मिले थे । वह उसके पुत्र को भी मिले और भोलेनाथ के साथ सभी देवताओं ने भी इस बालक को “गणेश” नाम दिया और बहुत से आशीर्वाद और वरदान दिए। सभी देवताओं द्वारा और स्वयं परम शिव और शक्ति द्वारा दिए आशीर्वाद में ही बालक गणेश को विघ्नहर्ता गणेश और प्रथम पूजनीय गणेश बनाया।
यह कथा मैंने अपने गुरुदेव से सुनी थी परंतु पढ़ने में बहुत जगह छोटे-छोटे आख्यान मिलते हैं जैसे कि ब्रह्मवैव्रतपुराण में भी कुछ श्लोक में इस कहानी के कुछ अंश का वर्णन मिलता है। गणेश पुराण और नारद पुराण में भी गणेश जी के इसी स्वरूप का वर्णन है
गणेश जी का स्वरूप
इस कहानी के माध्यम से हम आसानी से याद भी रख सकते हैं और समझ भी सकते हैं। जब भगवान शिव ने बालक गणेश का सिर कटा तब मां पार्वती बहुत दुखी हुई और सभी देवता भी डर गए और परेशान हुए कि अब आगे की स्थिति क्या रहेगी। जब भोलेनाथ ने गणेश जी को पुनः जीवनदान दिया। तब सभी देवताओं ने उनको वरदान दिए। ऐसी मान्यता है कि उनके शरीर पर जीवन और ब्रह्मांड से जुड़े अश निवास करते हैं। उनका प्रत्येक शारीरिक अंग अपने भीतर एक चमत्कार छुपाए हुए हैं। जो मानव जीवन को बहुत सी परेशानियों से बाहर निकलता है। गणपति जी के कानों में वैदिक ज्ञान है । सूंड में धर्म है। दाएं हाथ में वरदान, उनके बाएं हाथ में अन्य का चिन्ह है। पेट में सुख और समृद्धि निवास करते हैं। नेत्रों में लक्ष्य का वास है। नाभि में ब्रह्मांड समाया है। चरणों में सप्तलोक हैं। उनके मस्तक पर ब्रह्म लोक विद्यमान है । भगवान गणेश के दर्शन करने से सभी चीजों का ज्ञान मिलता है और संपूर्ण ब्रह्मांड का आशीर्वाद मिलता है ।शास्त्रों के अनुसार जो भी जातक शुद्ध तन और मन से उनके अंगों के दर्शन करता है उनको धन ,संतान, विद्या और स्वास्थ्य से संबंधित सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं । इसके अलावा जीवन में आने वाले संकटों से भी छुटकारा मिलता है
इस प्रकार गणेश जी भगवान के सब पूरे शरीर पर सभी देवताओं ने वास किया| जब दरिद्रता बाकी रह गई तो गणेश जी ने उन्हें अपनी पीठ में स्थान दिया |इसी कारण यह मान्यता है भगवान गणपति की पीठ पर दरिद्रता वास करती है इसीलिए उनकी पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए । यदि पूजा करते समय, परिक्रमा करने पर उनकी पीठ के दर्शन अनजाने में हो भी जाते हैं तो तुरंत गणपति जी से क्षमा याचना करें। और “ओम गं गणपतये नमः मंत्र” का जाप करें।
गणेश जी के शरीर का रंग लाल और हरा है। इसमें लाल रंग शक्ति का और हरा रंग समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसका एक अर्थ यह है कि जहां भी गणेश जी वास करेंगे , वहां पर शक्ति और समृद्धि दोनों का वास होगा।
यह संपूर्ण घटनाक्रम भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन हुआ था इसी दिन श्री गणेश का जन्म हुआ। इसीलिए आज ही के दिन प्रतिवर्ष “गणेश चतुर्थी” का त्यौहार मनाया जाता है।
गणेश जी महाराज की कृपा हम सब पर बनी रहे🙏🏻