दुर्गा मां के नौ रूपों की पूजा करने के त्योहारों को ही नवरात्रि कहा जाता है यहां हम माता के अलग-अलग नौ रूपों के पूजा करते हैं इस आर्टिकल में हम समझेंगे की नवरात्रि में अलग-अलग दिन किस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए? और कैसे? और क्यों?
मां दुर्गा को समर्पित यह पर्व सनातन संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण है पूरे 9 दिन तक मां आदिशक्ति मां जगदंबा का पूजन किया जाता है। वैसे तो प्रत्येक वैदिक मास में अमावस्या के बाद के 9 दिन नवरात्रि ही कह जाते हैं परंतु इन सभी में चार नवरात्रि का विशेष महत्व है और जिसमें से दो गुप्त नवरात्रि होती हैं और एक चैत्र की प्रकट नवरात्रि और एक शारदीय नवरात्रि होती है।
नवरात्रि में 9 दिन का महत्व
नवरात्रि का त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें मां दुर्गा की प्रतिमाएं विराजित की जाती है। साथ ही कई स्थानों पर गरबा और रामलीला का आयोजन किया जाता है। इस 9 दिन के पर्व में पहले दिन घट स्थापना की जाती है और मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा शुरू करते हैं। मां दुर्गा के हर स्वरूप की अपनी ही एक महिमा है। अपने ही गुण है। अपना एक पूजा करने के तरीका हैं। हर स्वरूप से अलग-अलग मनोरथ पूर्ण होते हैं। एक तरह से यदि हम कहे की यह त्यौहार नारी शक्ति को महत्व देने का त्यौहार है । या कह सकते हैं कि नारी शक्ति की पूजा करने का त्यौहार है।
मां दुर्गा के स्वरूप
मां दुर्गा के 9 स्वरूप है और नवरात्रि में रोजाना एक अलग स्वरूप की पूजा और आराधना सभी भक्तजन करते हैं आगे समझते हैं कि अलग-अलग दिन की पूजा क्यों और कैसे करनी है।
मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप “शैलपुत्री “
पहला नवरात्रि के दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप “शैलपुत्री स्वरूप” का पूजन किया जाता है ।जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है शैल अर्थात मजबूत शीला। पर्वतों के राजा हिमालय देव के यहां पर जन्म लेने के कारण ही मां के इस स्वरूप का नाम शैलपुत्री पड़ा । पार्वती के रूप में इन्हें भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। आपका वाहन वृषभ (या बैल ) है। आपने दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल धारण किया हुआ है। मां शैलपुत्री का पूजन और उनका मंत्र निम्नलिखित है।
मंत्र – ह्रीं शिवायै नम:
यदि आप उनके मंत्र के विषय में नहीं भी जानते हैं । आपको उनके पूजन का तरीका नहीं भी पता है, तो भी यदि आप आज के दिन या रात्रि में कभी भी इस मंत्र का जाप करते हैं। तो उस दिन आकाश में इस प्रकार की स्थिति रहती है कि, वह आपके जाप के फ्रीक्वेंसी से कोऑर्डिनेट (cordinate)करके आपके अंदर छुपे हुए faith, commitment, विश्वास और दृढ़ता आदि गुणों को जागृत कर देती है। मा शैल पुत्री को देसी घी अर्पण करें।
मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप “ब्रह्मचारिणी”
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा की जाती है । मां के स्वरूप को समझे, तो उनके दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल है। हजारों वर्षों तक मां ने कठिन तपस्या की इस कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। कई वर्षों तक निराहार रहकर अत्यंत कठिन तप से इन्होंने महादेव को प्रसन्न किया। मां ब्रह्मचारिणी का पूजा का मंत्र निम्न है।
ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:
यदि आपको इस मंत्र का बोध नहीं है तो भी आप उस दिन या रात्रि में कभी भी इस मंत्र का जाप जरुर करें । क्योंकि यह मंत्र आपके अंदर छुपे हुए डिसिप्लिन के गुण को, अच्छे व्यवहार के गुण को , सच्चाई और तप के गुण को जागृत करता है। मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर का भोग पसंद है।
चंद्रघंटा मां का तीसरा स्वरूप है।
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा और अर्चना की जाती है। मां के स्वरूप को समझे तो मां के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंद्रमा विराजमान है इसीलिए उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। मां के इस स्वरूप के 10 हाथ माने गए हैं । और यह खड़क् आदि अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित है। ऐसा माना जाता है की मां के इस स्वरूप की पूजा करने से मन में एक अलग ही तरह की एक अलौकिक सी शांति मिलती है। इससे इस धरती लोक पर भी हमारा कल्याण होता है और परम लोक में भी हमारा कल्याण होता है। मां की पूजा के लिए निम्न मंत्र बताया हुआ है।
‘’ऐं श्रीं शक्तयै नम:’’
यदि आपको इस मंत्र का अर्थ न भी समझ में आए , तो भी इस मंत्र के जाप करने से आपको अपने मन पर काबू रखने की शक्ति मिलती है । एक तरह की जागरूकता या कह सकते हैं कि अलर्टनेस, हमेशा तैयार रहने का गुण, आप में इस मंत्र जाप से जरूर जागृत होगा।
मां चंद्रघंटा को दूध , दूध की मिठाई या खीर का भोग अति प्रिय है।
मां दुर्गा का चतुर्थ स्वरूप कूष्मांडा
नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा जी के चतुर्थ स्वरूप कुष्मांडा रूप की पूजा- अर्चना की जाती है। माना जाता है कि जब पूरी सृष्टि नहीं बनी थी। तब चारों ओर केवल शून्य था या कह सकते हैं कि अंधकार था। तब मा ने इस अंड या कहे ब्रह्मांड की रचना की थी। इसी कारण उन्हें कुष्माण्डा कहा जाता है। मां का स्वरूप कुछ ऐसा है कि उनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं । आपके आठ हाथ हैं जो की कमंडल, धनुष ,बाण ,कमल पुष्प, अमृत पूर्ण कलश, चक्र ,गदा, सिद्धि तथा वृद्धि को देने वाली जपमाला है। साथ ही हम उनके नाम में छुपे हुए अर्थ को समझे तो कुश कहते हैं घास को। जो कि अपने आप में ही अमृत है, पवित्र है। हर तरह की विपरीत परिस्थितियों में भी उग जाती है। ऊपर से आप काट भी दो फिर भी उगती है। यही गुण growth का यही एटीट्यूड ,यही पॉजिटिविटी, हमें मां के इस स्वरूप से मिलती है। यदि हम इनके मंत्र का जाप आज के दिन करें तो एक सकारात्मक रवैया हम अपने आप में पाते हैं । अपने आप को बढ़ाने का गुण, हम पॉसिबिलिटीज के लिए- संभावनाओं के लिए अपने आप को तैयार पाते हैं।
मां को मालपुआ का भोग बहुत पसंद है।
पूजा के लिए मंत्र। ‘’ऐं ह्री देव्यै नम:’’
पांचवा स्वरूप “स्कंधमाता”
मां के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता की पूजा की जाएगी। यदि हम नाम के अर्थ को समझे तो “स्कंध” भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिक का एक नाम है। तो उनकी मां होने के कारण इनका नाम स्कंधमाता पड़ा। उनके स्वरूप में चार हाथ हैं। एक हाथ में कमल का फूल लिए हुए हैं और एक हाथ वर मुद्रा में है । एक हाथ में भगवान स्कंद या कुमार कार्तिकेय को पकड़ा है। सूर्य मंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण सूर्य के समान अलौकिक तेज मंडल सा इन का स्वरूप है । मां की पूजा के लिए निम्न मंत्र है ।
‘’ऐं ह्री देव्यै नम:’’
यदि आप मा की किसी भी रूप में पूजा करें -अर्चना करें। आप उनका मंत्र जाप करें। तो साहस का गुण , करुणा का गुण, अपने आप को प्यार करने का गुण, दूसरों को प्यार करने का गुण, आपको फल स्वरुप मिलेगा। माता को केले का भोग अति प्रिय है।
छठा स्वरूप” मां कात्यायनी”
मां कात्यायनी के अस्तित्व में आने को लेकर एक बहुत सुंदर कहानी है कि राक्षस महिषासुर ने पृथ्वी लोक पर बहुत अत्याचार बढ़ा दिए थे तब तीनों महाशक्तियां ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने-अपने तेज का अंश देकर एक देवी को उत्पन्न किया। इस देवी की पूजा सर्वप्रथम महर्षि कात्यायन ने की थी इसीलिए इनका नाम कात्यायनी देवी पड़ा। और देवी पुराण इस विषय पर कहता है कि कात्यायन ऋषि के घर पर मां ने पुत्री के रूप में जन्म लिया, इस कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। मां का स्वरूप सोने जैसा सुनहरा और चमकदार है। कमल पुष्प और तलवार उनके हाथ में है ,और दो अन्य हाथ वर मुद्रा और अभय मुद्रा में है।
पूजा के लिए निम्न मंत्र
‘’क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:’’
मां को प्रसाद में मधु अति प्रिय है।
मां का सातवां स्वरूप “कालरात्रि”
मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। मां के पूरे शरीर का रंग एक अंधकार की तरह से है । इसीलिए इनका शरीर काला रहता है। उनके सिर के बाल खुले हुए रहते हैं । गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है । उनके तीन नेत्र हैं, और यह तीनों नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल है। मां का यह स्वरूप काल अर्थात बुरी शक्तियों का नाश करने वाला है। इसलिए भी इन्हें कालरात्रि के नाम से जाना जाता है।
मां की पूजन के लिए मंत्र
‘’क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:’’
मां की पूजा करने से शांति ,समय, स्थिरता,अपने किए हुए कामों के बारे में सोचने का, समय की कीमत का गुण, इस स्वरूप की पूजा करने से हमें मिलता | माता को गुड़ का भोग लगाया जाता है।
मां का आठवां स्वरूप “महागौरी“
नवरात्रि के आठवें दिन को दुर्गा अष्टमी भी कहा जाता है क्योंकि आपके इस स्वरूप का नाम महागौरी है। अपने गोरे रंग के कारण इनका नाम महागौरी हुआ। माता के स्वरूप की पूजा करने से उपासक के हर असंभव कार्य को मां आशीर्वाद देकर पूरा कर देती हैं। मां के स्वरूप को समझे तो पूर्णतः गोरा रंग है। उनके रंग की उपमा शंख से, चंद्रमा से , कुंद के फूल से दी जाती है। मां की मुद्रा अत्यंत शांत है। यह अपने हाथों में डमरू, त्रिशूल धारण किए हुए हैं। और दो हाथ वर मुद्रा और अभय मुद्रा में है।
मां का पूजन का मंत्र-
‘’श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:’’
मां के इस स्वरूप की पूजा करने से ज्ञान, सच्चाई , पवित्रता जैसे गुण आप में जागृत होते हैं।
मां को नारियल का भोग लगाना चाहिए।
नवा स्वरूप “सिद्धिदात्री”
नवरात्रि में आखिरी 90 दिन या अंतिम दिन मां दुर्गा के नवे स्वरूप मां सिद्धिदात्री का पूजन अर्चन किया जाता है यदि हम नाम के अर्थ को समझें तो सीढ़ियां को प्रदान करने वाली कह सकते हैं उनकी पूजा से हम सभी भक्त सीढ़ियां को प्राप्त कर पाते हैं यह कमल के फूल पर विराजती हैं और इनका वाहन सिंह है इनकी उपासना से सभी भक्तों की इच्छाएं पूर्ण होती हैं मां को विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाया जाता है।
मां की पूजन के लिए मंत्र-
‘’ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:’’
मां के स्वरूप की पूजा अर्चना करने से (परफेक्शन) हर काम बहुत अच्छे तरीके से संपन्न करने का गुण ,संपूर्ण करने का गुण, सफलता प्राप्त करने का गुण, लगातार कोशिश करने का गुण , आप अपने आप में बढ़ा लेते हैं।
शास्त्रों में सिद्धि का जिक्र करें तो आठ प्रकार की सिद्धियां बताई गई हैं उनके नाम है- अणिमा, महिमा, गरिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व। मां के इस स्वरूप की पूजा करने से इन सभी सीढ़ियां को प्राप्त किया जा सकता है।
मैं डॉक्टर शैफाली गर्ग,उम्मीद करती हूं कि आपको यह जानकारी पसंद आए, आपके काम आए ।इन्हीं शुभकामनाओं के साथ आभार!