Dr Shafali Garg

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ज्योतिष” भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है, और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है।

HOLI 2025:जाने क्यों मनाई जाती है होली ?और क्या कहता है विज्ञान?

होली का त्योहार संपूर्ण भारतवर्ष में अनेकों नाम से जाना जाता है। कहीं रंगों का त्योहार कहते हैं,,,, तो कहीं प्रेम का,,,कहीं इसे सर्दियों की समाप्ति की खुशी,,, तो कहीं शिव द्वारा वासना की विजय के रूप में इच्छाओं को जीतने वाला त्योहार कहा जाता है।
चंद्र कैलेंडर के अनुसार यह वर्ष की अंतिम पूर्णिमा को मानते हैं क्योंकि होली से अगली पूर्णिमा नव वर्ष में आएगी, यह भी एक कारण है कि हम वर्ष की अंतिम पूर्णिमा को सभी पुराने grudges को आग में जलाकर रंगों से नवजीवन का या नव वर्ष का स्वागत करते हैं

दरअसल होली की इतनी विशेषताएं मैंने आपको होली का असल अर्थ समझने के लिए बताई हैं।
होली का त्योहार फागुन माह में मनाया जाता है जिसका अपने आप में एस्टॉनोमिकल साइनिफिकेंस होता है।

हमारी जोडियक बेल्ट में जीरो डिग्री से 360 डिग्री के बीच 120 डिग्री से 146 डिग्री 40 मिनट तक दो नक्षत्र आते हैं। पूर्वा फाल्गुनी और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र। इन्हीं नक्षत्रों के नाम पर इस माह का नाम फाल्गुन पड़ा।

इस नक्षत्र के छिपे हुए नाम के अर्थ को समझे तो पिछले जीवन में किए अच्छे कर्मों का फल इस जीवन में सुख सुविधा और ऐश्वर्या के रूप में मिलेगा।

इन नक्षत्रों के दो चमकते हुए सितारे हैं ,जोशमा और डेनिबोला,इस माह पूर्णिमा के दिन चंद्रमा इन दोनों नक्षत्र के बिलकुल बीच में या आसपास गोचर करते हैं इन दोनों चमकते सितारों का वैदिक सिंबल है बेड या झूले का स्टैंड

शिवरात्रि के ठीक 15 दिन बाद होली का त्योहार प्रतीक है शिव और शक्ति के मिलन का या कह सकते हैं (male and female energies combined as a life in cosmos .}

ग्रहों को समझ तो पूर्णिमा के दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों मैक्सिमम दूरी पर होते हैं चंद्रमा उस दिन कन्या राशि के उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में गोचर करते हैं और सूर्य मीन राशि में उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र पर गोचर करते हैं यह कुछ इस तरह की ऊर्जा क्रिएट करते हैं जिसमें चीजों को रूपांतरण करने की क्षमता है।

एक तरह से एक पैटर्न पर चली आ रही जिंदगी को बदलने की क्षमता है। अग्नि दहन की प्रथ इसी बात की और संकेत करती है।

जैसा कि आप सभी होलीका और प्रहलाद की कथा से वाकिफ होंगे ही, परंतु उसका एक पहलू यह भी है कि होलिका को तो वरदान से स्वयं ब्रह्मा जी से शॉल मिली हुई थी और प्रहलाद स्वयं उनकी गोद में बैठे थे तो शॉल होते हुए भी होलिका जल गई और प्रहलाद बच गए।
असल में जब होलीका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठी तो उसके मस्तिष्क में बहुत से विचार जागे, की क्या सही है और क्या गलत है। उन विचारों के चलते उसने अपनी शॉल हटाकर प्रहलाद पर रखी। उसने अपने जीवन को एक ट्रांसफोर्मेशन दिया ,,वह महसूस किया कि क्या सही है और क्या गलत है और अपनी बुराइयों से हटकर उसने जो बलिदान दिया जो समाज की भलाई के लिए दिया। यह प्रथा उस दिन से शुरू हुई जो कि आज तक हम सभी को यह मैसेज भी देती है कि हमे सही गलत की समझ होनी चाहिए और हम होली के दिन के महत्व को समझें और अपने अंदर की बुराइयों से खुद को जीत पाए। अपने जीवन को बदल पाए। कह सकते हैं की कुदरत ने हमें यह मौका दिया है कि हम पहले दिन अपनी सारी कमियों को जला दें और दूसरे दिन नए रंग को + नई खुशियों को + अच्छी आदतों कोअपने जीवन में शामिल करें होली बाहय प्रक्रिया नहीं है बल्कि आंतरिक प्रक्रिया है

होलिका की अग्नि ज्ञान की अग्नि है।

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