Dr Shafali Garg

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ज्योतिष” भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है, और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है।

गणपति जी को घर में बिठाने का रहस्य

सभी सनातन धर्मावलंबी प्रति वर्ष गणपति की स्थापना तो करते है लेकिन हममे से बहुत ही कम लोग जानते है कि आखिर हम गणपति क्यों बिठाते हैं ? आइये जानते है।

हमारे सबसे पवित्र ग्रंथ महाभारत की रचना “महर्षि वेदव्यास” ने की थी! उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से ,अपनी सोच से उस समय की स्थिति का सटीक वर्णन किया। परंतु इसको लिखने का कार्य श्री गणेश जी ने किया। उन्होंने श्री गणेश से प्रार्थना की कि आप इस महा ग्रंथ को लिखने में उनकी सहायता करें और गणेश जी ने यह सहमति दी और साथ ही शर्त भी रख दी ,की लेखन का कार्य रात और दिन लगातार चलता रहेगा । एक बार भी यदि उन्होंने कलम रख दी तो वह दोबारा लिखना शुरू नहीं करेंगे ‌। महर्षि ने इस शर्त के लिए सहमति दी और यह लेखन का कार्य रात दिन शुरू हुआ। परंतु गणेश जी यह कार्य करते हुए बहुत थक भी गए थे । और वह रुक भी नहीं रहे थे। जिससे उनके शरीर का तापमान बढ़ता जा रहा था। वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप भी किया, परंतु लेप के सूखने के बाद गणेश जी के शरीर में बहुत ही अकड़न आ गई । इसीलिए गणेश जी के शरीर का एक नाम” पार्थिव गणेश” भी पड़ा । महाभारत के लिखने का कार्य 10 दिनों तक चला । जो की अनंत चतुर्दशी तक संपन्न हुआ और इन 10 दिनों में गणेश जी का शारीरिक तापमान बहुत अधिक बढ़ गया था । और उनके शरीर पर लेप की हुई मिट्टी भी सुख-सुख कर झड़ रही थी । तो अनंत चतुर्दशी के दिन वेदव्यास जी ने गणेश जी को पानी में डाल दिया। इन 10 दिन में वेदव्यास जी ने गणेश जी को खाने के लिए अलग-अलग पदार्थ दिए जो कि उनके मनपसंद थे। इन्हीं 10 दिनों गणेश जी को अलग-अलग उनकी पसंद के पदार्थ अर्पण किए जाते हैं

गणेश चतुर्थी को कुछ स्थानों पर डंडा चौथ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि गुरु शिष्य परंपरा के तहत इसी दिन से विद्याध्ययन का शुभारंभ होता था। इस दिन बच्चे डण्डे बजाकर खेलते भी हैं। गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि का दाता भी माना जाता है। इसी कारण कुछ क्षेत्रों में इसे डण्डा चौथ भी कहते हैं।

‬पार्थिव श्रीगणेश पूजन का महत्त्व

अलग अलग कामनाओ की पूर्ति के लिए अलग अलग द्रव्यों से बने हुए गणपति की स्थापना की जाती हैं।

(1) श्री गणेश👉 मिट्टी के पार्थिव श्री गणेश बनाकर पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती हे!

(2) हेरम्ब👉 गुड़ के गणेश जी बनाकर पूजन करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती हे।

(3) वाक्पति👉 भोजपत्र पर केसर से पर श्री गणेश प्रतिमा चित्र बनाकर। पूजन करने से विद्या प्राप्ति होती हे।

(4) उच्चिष्ठ गणेश👉 लाख के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से स्त्री। सुख और स्त्री को पतिसुख प्राप्त होता हे घर में ग्रह क्लेश निवारण होता हे।

(5) कलहप्रिय👉 नमक की डली या। नमक के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से शत्रुओ में क्षोभ उतपन्न होता हे वह आपस ने ही झगड़ने लगते हे।

(6) गोबरगणेश👉 गोबर के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से पशुधन में व्रद्धि होती हे और पशुओ की बीमारिया नष्ट होती है (गोबर केवल गौ माता का ही हो)।

(7) श्वेतार्क श्री गणेश👉 सफेद आक मन्दार की जड़ के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से भूमि लाभ भवन लाभ होता हे।

(8) शत्रुंजय👉 कडूए नीम की की लकड़ी से गणेश जी बनाकर पूजन करने से शत्रुनाश होता हे और युद्ध में विजय होती हे।

(9) हरिद्रा गणेश👉 हल्दी की जड़ से या आटे में हल्दी मिलाकर श्री गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विवाह में आने वाली हर बाधा नष्ठ होती हे और स्तम्भन होता हे।

(10) सन्तान गणेश👉 मक्खन के श्री गणेश जी बनाकर पूजन से सन्तान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं।

(11) धान्यगणेश👉 सप्तधान्य को पीसकर उनके श्रीगणेश जी बनाकर आराधना करने से धान्य व्रद्धि होती हे अन्नपूर्णा माँ प्रसन्न होती हैं।

(12) महागणेश👉 लाल चन्दन की लकड़ी से दशभुजा वाले श्री गणेश जी प्रतिमा निर्माण कर के पूजन से राज राजेश्वरी श्री आद्याकालीका की शरणागति प्राप्त होती हैं।

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