Dr Shafali Garg

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ज्योतिष” भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है, और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है।

गणेशजी स्तोत्र

गणेशजी का यह स्तोत्र स्वयं सिद्ध अनुभूत तथा अचूक है। इस स्तोत्र के पाठ से ही पंचदेव यानी कि ब्रह्मा विष्णु महेश्वर भगवान सूर्य और भगवान गणेश साधक पर प्रसन्न हो जाते हैं। साधक को मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
यह दिव्य स्तोत्र अपनी उर्जा से व्यक्ति की मन, विवेक, आत्मा, तथा अंतरात्मा का परमआह्लाद वर्धन करने वाला है।

यह दिव्य स्तोत्र श्री भगवान गणेश को ध्यान करते हुए या स्मरण करते हुए पाठ किया जाए तो भगवान गणेश अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं। यह महान दिव्य स्तोत्र ‘सर्वद’ है मतलब सब कुछ देने वाला है।
जो मन में भक्ति भाव रखते हुए इस महान दिव्य स्तोत्र का पाठ करता है। उसको सरलता से ही धर्म अर्थ काम मोक्ष की प्राप्त हो जाती है। धर्म यानी आध्यात्मिक उन्नति तथा सभी प्रकार के पापों का नाश, अर्थ का मतलब धन संपदा ऐश्वर्या, रिद्धि सिद्धि तथा सौभाग्य प्राप्ति, काम का मतलब व्यक्ति अपने जीवन में जो भी कामना करता है वह पूर्ण हो जाती है, और उत्तम प्राण संगिनी की प्राप्ति होती हैऔर पति पत्नी में अतुलनीय प्रेम की वृद्धि होती है। और अंत में मोक्ष यानी साधक परमेश्वर में विलीन हो जाता है।

इस महान स्तोत्र के नित्य पाठ से कुल वृद्धि होती है। साधक के पुत्र पौत्रादि में वर्धन होता है। और लक्ष्मी उसे कभी छोड़कर नहीं जाती है। संसार में ‘श्रीमान’ होकर जीवन यापन करता है। व्यक्ति का हर दिन आनंदमय होता है।
यदि कोई उपासक स्तोत्र का नित्य ७ बार पाठ २१ दिन तक पाठ करे तो यदि उसका कोई संबन्धी कारागार में यानी कि जेल में पड़ा है तो मुक्त हो जाता है।
और यदि किसी भी प्रकार का बंधन में पडा हो जैसे कि ग्रह बंधन, व्यवसाय बंधन, भाग्य बंधन यानी दुर्भाग्य, इसी तरह जितना भी बंधन है हो सभी बंधन अपने आप नष्ट हो जाते हैं। याद रहे प्रतिदिन ७ बार २१ दिन तक। चमत्कार आपके सामने होगा।
हमारे एक दिवस में तीन काल होते है। सुबह का समय को प्रातः काल कहते हैं मध्यान्ह का समय को मध्यान्ह काल कहते हैं और संध्या का समय को संध्याकाल कहते हैं। यह तीन काल को त्रिकाल कहते हैं। यदि कोई उपासक इस महान दिव्य स्तोत्र का एक काल द्विकाल या त्रिकाल में पाठ करता है वह स्वयं देवताओं का वंदनीय हो जाता है।
यदि किसी के ऊपर मारण उच्चाटन विद्वेषण या कोई बड़े तांत्रिक प्रयोग किया गया है तो इस स्तोत्र का नित्य २१ दिन तक प्रतिदिन २१ बार पाठ करना चाहिए। यह दिव्य स्तोत्र सभी प्रकार के मारण विद्वेषण उच्चाटन तथा तांत्रिक क्रिया का सर्वनाश कर देगा यानी कि सभी को नष्ट कर देगा।
इस स्तोत्र का पाठ करने वाले साधक को किसी प्रकार का कोई भी भय नहीं लगता है.वह निर्भय हो जाता है सुरक्षित हो जाता है।

धनधान्य समृद्धि, संपत्ति मैं वृद्धि, आरोग्यता यानी कि सभी प्रकार के रोगों से आरोग्य, यान वाहन में वृद्धि, तथा सभी प्रकार की संपन्नता प्राप्ति होती है। ‘यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्’ यानी कि उपासक जो भी मनोकामना अपने मन में चिंतन करता है उसे यह दिव्य स्तोत्र के नित्य पाठ से निश्चित रूप से मिल जाता है।

🌹विधान- पंचदेव सहित भगवान गणेश का पूजन करते हुए प्रतिदिन स्तोत्र का २१ बार पाठ करें। २१ दिन तक करने के पश्चात ०५ बालकों को भोजन करायें।

 🙏 श्रीगणेशस्तुतिः 🚩

🌹श्रीगणेशाय नमः।

पञ्चदेवा ऊचुः।
नमस्ते विघ्नराजाय भक्तानां विघ्नहारिणे।
विघ्नकर्त्रे ह्यभक्तानां गणेशाय नमो नमः।।१।।

हेरंबाय नमस्तुभ्यं ढुण्ढिराजाय ते नमः।
विनायकाय देवाय ब्रह्मणां नायकाय च।।२।।

लम्बोदराय सिद्धेश गजाननधराय च।
शूर्पकर्णाय गूढाय चतुर्हस्त नमोऽस्तुते।।३।।

लम्बोष्ठायैकदन्ताय सर्वेशाय गणाधिप।
अनन्तमहिमाधार धरणीधर ते नमः।।४।।

नमो मायामयायैव मायाहीनाय ते नमः।
मोहदाय नमस्तुभ्यं मोहहन्त्रे नमो नमः।।५।।

पञ्चभूतमयायैव पञ्चभूतधराय च।
इन्द्रियाणां चाधिपायेन्द्रियज्ञानप्रकारिणे।।६।।

अध्यात्मनेऽधिभूतायाधिदैवाय च ते नमः।
अन्नायान्नपते तुभ्यमन्नान्नाय नमो नमः।।७।।

प्राणाय प्राणनाथाय प्राणानां प्राणरूपिणे।
चित्ताय चित्तहीनाय चित्तेभ्यश्चित्तदायिने।।८।।

विज्ञानाय च विज्ञानपतये द्वन्द्वधारिणे।
विज्ञानेभ्यः स्वविज्ञानदायिने ते नमो नमः।।९।।

आनन्दाय नमस्तुभ्यमानन्दपतये नमः।
आनन्दानन्ददात्रे च कारणाय नमो नमः।।१०।।

चैतन्याय च यत्नाय चेतनाधारिणे नमः।
चैतन्येभ्यः स्वचैतन्यदायिने नादरूपिणे।।११।।

बिन्दुमात्राय बिन्दूनां पतये प्राकृताय च।
भेदाभेदमयायैव ज्योतीरूपाय ते नमः।।१२।।

सोऽहंमात्राय शून्याय शुन्याधाराय देहिने।
शून्यानां शून्यरूपाय पुरुषाय नमो नमः।।१३।।

ज्ञानाय बोधनाथाय बोधानां बोधकारिणे।
मनोवाणीविहीनाय सर्वात्मक नमो नमः।।१४।।

विदेहाय नमस्तुभ्यं विदेहाधारकाय च।
विदेहानां विदेहाय साङ्ख्यरूपाय ते नमः।।१५।।

नानाभेदधरायैव चैकानेकादिमूर्तये।
असत्स्वानन्दरूपाय शक्तिरूपाय ते नमः।।१६।।

अमृताय सदाखण्डभेदाभेदविवर्जित।
सदात्मरूपिणे सूर्यरूपाधाराय ते नमः।।१७।।

सत्यासत्यविहीनाय समस्वानन्दमूर्तये।
आनन्दानन्दकन्दाय विष्णवे ते नमो नमः।।१८।।

अव्यक्ताय परेशाय नेतिनेतिमयाय च।
शिवाय शाश्वतायैव मोहहीनाय ते नमः।।१९।।

संयोगेन च सर्वत्र समाधौ रूपधारिणे।
स्वानन्दाय नमस्तुभ्यं मौनभावप्रदायिने।।२०।।

अयोगाय नमस्तुभ्यं निरालम्ब स्वरूपिणे।
मायाहीनाय देवाय नमस्ते ह्यसमाधये।।२१।।

शान्तिदाय नमस्तुभ्यं पूर्णशान्तिप्रदाय ते।
योगानां पतये चैव योगरूपाय ते नमः।।२२।।

गणेशाय परेशाय ह्यपारगुणकीर्तये।
योगशान्तिप्रदात्रे च महायोगाय ते नमः।।२३।।

गुणान्तं न ययुर्यस्य वेदाद्या वेदकारकाः।
स कस्य स्तवनीयः स्याद्यथामति तथा स्तुतः।।२४।।

तेन वै भगवान् साक्षाच्चिन्तामणि गजाननः।
प्रसन्नो भवतु त्राताऽस्माकं त्वं परमा गतिः।।२५।।

इत्येवमुक्त्वा देवेशास्तूष्णीं भूतास्तथा शिवे।
गणेशोऽपि प्रसन्नात्मा हृष्टः सन् प्रत्युवाच तान्।।२६।।

    🚩फलश्रुति🚩

श्रीगणेश उवाच।
पञ्चदेवा महाभागाः प्रसन्नो भवतां स्तवैः।
तपसा च तथा भक्त्या वाञ्छितं ब्रूत वै वरम्।।२७।।

भवत्कृतमिदं स्तोत्रं परमाह्लादवर्धनम्।
मम प्रीतिकरं भक्त्या सर्वदं प्रभविष्यति।।२८।।

यः पठेद्भावपूर्वं स धर्म कामार्थ मोक्ष भाक्।
पुत्रपौत्रयुतः श्रीमानन्ते स्वानन्दमाप्नुयात्।।२९।।

सप्तवारं पठेन्नित्यमेकविंशतिवासरम्।
कारागृहगतो वाऽपि मुच्यते बन्धनात् स्वयम्।।३०।।

एककालं द्विकालं वा त्रिकालमपि यः पठेत्।
स वै देवादिकैर्वन्द्यो भविष्यति न संशयः।।३१।।

मारणोच्चाटनादिभ्य एकविंशतिवारतः।
तावद्दिनानि पाठेन तस्य नैव भयं भवेत्।।३२।।

धनधान्यादिकं सर्वमारोग्यं पशुवर्धनम्।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।।३३।।🚩

।। इति पञ्चदेवैः कृता गणेशस्तुतिः सम्पूर्ण: ।।

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