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ज्योतिष” भाग्य नहीं बदलता बल्कि कर्म पथ बताता है, और सही कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है।

गणेश विसर्जन 2023: जाने गणेश विसर्जन सही है या गलत

आज संपूर्ण भारतवर्ष में गणेश पूजन और गणेश विसर्जन करने की एक परंपरा से शुरू हो गई है परंतु इसके पीछे शास्त्रों में वर्णित एक कहानी है जिससे हमें यह पता चलता है कि उत्तर भारत में हमें गणेश जी का विसर्जन क्यों नहीं करना चाहिए।

कहानी की शुरुआत  हम करते हैं , शिव परिवार से। एक दिन जब भोलेनाथ और मां पार्वती ने  यह निर्णय किया; कि हमारे दोनों पुत्रों भगवान कार्तिकेय और भगवान गणेश जी दोनों में से कौन सर्वश्रेष्ठ है यह प्रतियोगिता रखी जाए। तो उन्होंने यह प्रस्ताव रखा कि दोनों पुत्रों में से जो संपूर्ण दुनिया की परिक्रमा कर कर पहले आएगा ,वह विजयी घोषित किया जाएगा। कार्तिकेय मोर की ऊपर बैठकर संपूर्ण भारत की परिक्रमा करने गए और उधर गणेश जी ने अपने माता-पिता की परिक्रमा करके उनका हृदय जीत लिया। परंतु दोनों भाइयों में यह बात थोड़ी वाद- विवाद में रही की ,बात संपूर्ण विश्व की परिक्रमा करने की हुई थी। तो ऐसे में भोलेनाथ ने अपने दोनों बच्चों में सामंजस्य रखने के लिए उत्तर भारत के क्षेत्र पर भगवान गणेश का अधिकार आधिपत्य दिया और दक्षिण भारत के क्षेत्र में भगवान कार्तिकेय को आधिपत्य दिया गया।

( रिफरेंस के लिए आप यह नोटिस भी कर सकते हैं कि उत्तर भारत में भगवान मुर्गन या कुमार कार्तिकेय के मंदिर भी हैं और वहां पर उनकी पूजा भी की जाती है।)

गणेश चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश के मन में यह विचार आया कि वह अपने भाई के घर घूम के आते हैं तो वह दक्षिण भारत उनसे मिलने के लिए गए, तो लोगों ने आतिथ्य के रूप में पंडाल लगाए , मंदिर सजाए,  उनको भोग लगाए,  पूजा की और जैसे की कोई मेहमान आता है खुश होकर सबके लिए तोहफे लाता है ठीक इस प्रकार गणेश जी महाराज ने  भी सबको आशीर्वाद दिए और उनकी मनोकामना पूर्ण की। और 10 दिन तक दक्षिण भारत में रह कर वह वापस अपने उत्तर भारत के क्षेत्र में आ गए और जल के रास्ते से वापस आए इसीलिए दक्षिण भारत में विसर्जन करने की परंपरा शुरू की हुई।

क्योंकि भगवान गणेश 10 दिन तक उत्तर भारत में नहीं थे तो जब वह वापस आए तो सभी भक्त जनों ने खूब पूजा की और जश्न मनाया।

इस कहानी से यह साफ समझ में आता है कि दक्षिण भारत में मेहमान के रूप में आए प्रभु का गणेश विसर्जन  वहा की परंपरा है ,परंतुइस कहानी से हमें यह समझ लेना चाहिए कि उत्तर भारत में स्थित अपने देवता का विसर्जन हमें बिल्कुल नहीं करना चाहिए।

हमें उनकी पूजा करनी चाहिए अपने आराध्य से प्यार करना चाहिए ।उनके गुणो  को अपनाना चाहिए। सही अर्थ में हम समझे तो यह एक अध्यात्मिक दिन है।अपनी इच्छाओं को पूर्ण कराने का दिन है।

आज संपूर्ण भारत में एक दूसरे की देखा -देखी गणेश जी की प्रतिमा लाकर,  उनको कुछ दिन अपने यहां मेहमान बनाकर , फिर विसृजन करने का फैशन हो गया है।  परंतु क्या यह बात ठीक है हमें गौर से सोचना चाहिए, जो हमारे घर का मालिक है , जो हमारी सोच  की, हमारी हर इच्छा की पूर्ति करते हैं,  क्या हम उन्हें ही विसर्जित कर देंगे और गणेश जी के विसर्जन के साथ, उनकी मां लक्ष्मी और उनकी  पत्नी रिद्धि  और सिद्धि  भी साथ में चली जाती हैं। तो हमें यह बहुत ध्यान से सोचना चाहिए कि हम यह विसर्जन ना करें।

महाराष्ट्र के  के क्षेत्र में  बाल गंगाधर तिलक ने सामूहिक गणेश पूजा के लिए शुरुआत की थी ,यह उसे समय की परिस्थितियों के अनुसार उन्होंने सोचा और किया।

यहां हमें एक चीज पर और गौर करना चाहिए कि जैसे कोई भी पूजा  या काम शुरू होता है तो सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है, फिर अपने पित्र महाराज की पूजा की जाती है। उसके बाद मां आदिशक्ति की पूजा करते हैं। फिर और सभी देवताओं की  पूजा की जाती है तो सालाना देश में जो पूजा की एक बेल्ट शुरू होती है,या कहें  पूजा कार्यक्रम शुरू होता है वह गणेश चतुर्थी से शुरू होता है यदि हम अभी गणेश जी को विदा कर देंगे, तो हम दिवाली पर किस प्रकार गणेश पूजन करेंगे जो देवता को हम अपने घर से भेज चुके हैं।

मेरा आप सभी से यह आग्रह है कि कृपया सोचें और अपने घर में स्थापित गणेश जी महाराज की पूजा करें, मेडिटेशन करें। और गणेश विसर्जन की परंपरा उत्तर भारत के लिए नहीं है🙏🏻

आपका दिन शुभ है मंगल मय हो।

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